TERI KAMI
हाँ खलती है तेरी कमी
आंखे भी अक्सर नम हो जाया करती
उन सूखे गुलाबो में आज भी
तेरी खुशबू आया करती है
हाँ सोचा था संभाल लेंगे खुद को तेरे जाने के बाद
अब इस दिमाग के भ्रम को दिल समझने लगा है
अब तो वो चाँद भी मुझपे हँसने लगा है
मेरे हालातो पे तंज़ कसने लगा है
हाँ अब रातों पे नींद का कर्ज बढ़ने लगा है
तकिये पे आंसुओ का झरना सा लगा है
ख्याल हर दफा सवाल करते है
तेरी ही बातें मुझसे बार बार करते है
हाँ टीस उठती है सीने में रह रह कर
जेहन में कई सवाल भी उमड़ते है
एक जख्म अगर भर भी गया तो
निशान कहा कभी मिटते है
हाँ कश्मकश है कई और कई मलाल भी है
तेरा यूँ छोड़ जाना एक पेंचीदा सवाल ही है
कोई मजबूरी ही रही होगी जो अचानक वो चला गया
मैं ही न समझ पाया अगर उसने कोई इशारा किया
हाँ अब सिख रहे है अब खुद ही सम्भलना
आंसुओं को थाम कर बातों को नज़रअंदाज़ करना
सब बदला जायेगा तुम्हारी तरह एक दिन
सिवाय उस टूटे दिल के जिसे तेरी कमी आज भी खलती है
❤️❤️❤️
बहुत सुन्दर कविता
ReplyDeleteवाह!!!
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Thank you so much for reading ❤️
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